बिहार के मध्य एवम् माध्यमिक/उच्च माध्यमिक विद्यालयों मे प्रधानाध्यापक के पद पर प्रोन्नति कैसे होगी....जानिए नए नियम

Patna.....बिहार सरकार द्वारा संचालित मध्य विद्यालय और उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापकों के पद स्वीकृत हैं। वर्त्तमान में जितने पद होने चाहिए उसकी तुलना में अभी प्रधानाध्यापकों की संख्या काफ़ी कम है। जिस वजह से अधिकांश विद्यालयों में इसका संचालन प्रभारी प्रधानाध्यापक के द्वारा ही किया जा रहा है। किसी भी विद्यालय में एक प्रधानाध्यापक की भूमिका बहुत ही अहम् होती है। वो न केवल विद्यालय का संचालन करते हैं बल्कि एक अनुशासित तौर पर उसकी व्यवस्था कायम रखते हैं। ऐसे में सरकार का दायित्व बनता है कि प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति रिक्त पदों पर शीघ्र और स्थायी रूप से की जाए।

अभी तक बिहार में शिक्षा विभाग द्वारा प्रधानाध्यापक पद के प्रोन्नति के लिए योग्यता एवं कार्यानुभव व उम्र के आधार पर प्रोन्नति का लाभ दिया गया है।

लेकिन पिछले सप्ताह शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार का एक बयान सोशल मीडिया में बहुत वायरल रहा जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रोन्नति के लिए लिखित परीक्षा होगी। इसके बाद कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ऐसी बातें भी सामने आईं कि ये परीक्षा वही दे सकेंगे जिनके पास 8 साल का अनुभव होगा। परीक्षा में 75 प्रतिशत तक अंक प्राप्त होने पर प्रोन्नति मिलेगी। 50 से 75 प्रतिशत के बीच अंक लाने वालों को दुबारा एग्जाम देने का मौका मिलेगा और 50 प्रतिशत से कम अंक लाने वालों को नौकरी से निकाला भी जा सकता है।

प्रधान सचिव के इस बयान के स्थानीय अखबारों में छपने के बाद शिक्षकों में आक्रोश व्याप्त है।

क्या हैं प्रोन्नति के वर्तमान नियम?

वर्त्तमान में उच्च माध्यमिक/माध्यमिक विद्यालयों में नियुक्ति के लिए तीन नियमवाली हैं:-

१) बिहार शिक्षा सेवा संवर्ग नियमवली, 2014- इसके तहत 69 राजकीय माध्यमिक/उच्च माध्यमिक विद्यालयों में प्रचार्य के पदों पर नियुक्ति संविलियन के आधार पर बिहार शिक्षा सेवा सवंर्ग के पदाधिकारियों के पदस्थापन की बात है।

२) बिहार राजकीयकृत माध्यमिक विद्यालय नियमावली 1983 के तहत प्रधानाध्यापकों के 50 प्रतिशत पद पर प्रणण्डलीय संवर्ग के साहयक शिक्षकों की नियुक्ति का प्रावधान है। इसके तहत 2787 राजकीयकृत विद्यालय आच्छादित हैं।

३) बिहार जिला परिषद माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालय सेवा नियमवाली 2020/बिहार नगर निकाय माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालय सेवा नियमवाली 2020-इसके तहत प्रधान अध्यापक के सभी पद प्रोनत्ति से भरे जाने हैं जिसमें पुराने और अनुभवी अध्यापकों को प्रमोट कर दिया जता है।

ठीक इसी प्रकार मध्य-विद्यालयों में प्रधानाध्यापक के पद पर नियुक्ति के लिए तीन नियमावली हैं:-

१) 391 राजकीय बुनियादी विद्यालय के प्रधानाध्यापक का पद अवर शिक्षा सेवा संवर्ग के मूल कोटि का है।

२) बिहार राजकीयकृत प्रारंभिक विद्यालय शिक्षक -स्थानंतरण अनुशाषिक करवाई और प्रोन्नती नियमवाली, 2018 के तहत जिला संवर्ग के साहयक शिक्षकों को मध्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक के पद पर प्रोन्नति का प्रावधान है।

३) बिहार पंचायत प्रारंभिक विद्यालय सेवा नियमवली 2020 और बिहार नगर प्रारंभिक विद्यालय सेवा नियमवली 2020, जिसके तहत पंचायत प्रारंभिक शिक्षक संवर्ग में प्रधान अध्यापक के सभी पद प्रोन्नति से भरे जायेंगे।

प्रधानाध्यापक के रिक्त पद पर पदस्थापन की कार्रवाई त्वरित गति से करते हुए गुणात्मक शिक्षा के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु शिक्षा विभाग के अपर सचिव गिरिवर दयाल सिंह की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है।
ये समिति कुछ खास बिंदुओं पर अनुशंसा देगी। प्रधानाध्यापक पद की नियुक्ति के कालावधि, योग्यता व पैनल का निर्धारण एवं प्रतयोगिता या सीमित परीक्षा का विकल्प और निर्धारण इसमें प्रमुख बिंदु हैं । उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय के लिए एक अथवा एक से अधिक प्रधानाध्यापक के पद सृजन और उनके दायित्वों के निर्धारण के प्रस्ताव पर भी अपनी अनुशंसा देगी। इसके अलावा समिति अपना प्रस्ताव भी रख सकती है।
ये समिति अपनी अनुशंसा प्रधान सचिव शिक्षा विभाग बिहार, पटना को एक महीने के अंदर समर्पित करेगी।

इस समिति के गठन पर क्या है विवाद?

इस समिति के गठन के बाद नियोजित शिक्षक दो धड़े में बंटे हुए हैं। एक धड़ा जो परीक्षा के अनुशंसा से खुश नहीं है तो दूसरा धड़ा 8 वर्ष के कार्यानुभव की बाध्यता की बात मीडिया रिपोर्ट्स में आने को लेकर नाराज है।

इस बारे में नियोजित शिक्षक संघों में एक पंचायत नगर प्रारंभिक शिक्षक संघ की प्रदेश सचिव सुप्रिया सिंह का कहना है,

“अनुभव और योग्यता के आधार पर प्रधानाध्यापक पद के लिए प्रोन्नति दी जाय, जो सरकार पहले से देती आयी है। इसलिए पुराने नियम से प्रोन्नति देना सरलतम उपाय है। अगर सरकार 75% प्राप्तांक व परीक्षा के बाध्यता के साथ प्रोन्नति देती है तो हमारे हिसाब से गलत होगा। उक्त बिंदु पर राज्य के विभिन शिक्षक संगठनों द्वारा तर्क-वितर्क व बातचीत का दौर जारी है। समय आने पर उक्त परीक्षा का विरोध व बहिष्कार भी हो सकता है।”

वहीं दूसरी ओर टीईटी शिक्षक संघ के प्रमंडलीय संयोजक राहुल देव सिंह प्रधानाध्यापक पद के टीईटी पास स्नातक प्रशिक्षित शिक्षकों को ही योग्य बताते हैं। उनका कहना है, “प्रमोशन के लिए जो 8 वर्ष के कार्यानुभव की बात सामने आ रही वो उचित नहीं। मध्य विद्यालयों में प्रधानाध्यापक की नियुक्ति के लिए योग्यता पूर्व से निर्धारित है। स्नातक ग्रेड के प्रशिक्षित वेतनमान में 5 वर्ष का कार्यानुभव पूर्व निर्धारित है। यदि कोई परीक्षा भी ली जाती है तो तो उसी को आधार बना कर लिया जाए। हम लोग इस चीज के खिलाफ हैं कि इसमें 8 साल के अनुभव की बाध्यता लागू किया जाए। ऐसा करने से सभी टीईटी शिक्षक प्रधानाध्यापक बनने की रेस से ही बाहर हो जाएँगे।

प्रधानाध्यापक पद पर प्रोन्नति के लिए परीक्षा होनी चाहिए लेकिन उसमें अनुभव की जरूरत ना हो। अगर ऐसा होता है तो ऐसा माना जायेगा की सरकार वाकई में योग्य शिक्षकों का सम्मान करती है अन्यथा लोकतान्त्रिक सरकार में अपनी बातों को मनवाने के लिए विरोध भी किया जा सकता है।”

सरकार क्यों बना रही है नए नियम?

प्रधानाध्यापक पद पदोन्नति के लिए नए नियम के निर्धारण की बात संभवत इसलिए सामने आ रही है कि सरकार शिक्षा की गुणवत्ता और शिक्षकों की योग्यता दोनों में सुधार लाना चाहती है। अक्सर मीडिया रिपोर्ट्स में यह बातें आती हैं कि शिक्षकों में बहुत सारे अयोग्य लोगों की भर्तियां हो गई है। हाईकोर्ट में भी फर्जी शिक्षकों की बहाली के मामले में सुनवाई चल रही है जिसको लेकर बार-बार सरकार की फजीहत होती रहती है।

लेकिन सोशल मीडिया पर विभिन्न शिक्षक संघों के नेताओं द्वारा जारी बयानों को देखें तो ऐसा लगता है कि शिक्षकों में यह संदेश गया है कि सरकार विगत विधानसभा चुनाव में शिक्षकों द्वारा किए गए खुलकर विरोध से खिन्न होकर शिक्षकों के विरुद्ध विभिन्न प्रकार के साज़िशें रच रही है।

अब आगे क्या होगा?

विभिन्न शिक्षक संघों ने खुल कर तो कुछ नहीं कहा लेकिन अगर यह समिति अपने प्रस्ताव में परीक्षा या 8 वर्ष के कार्यानुभव की बात करती है तो मामले के कोर्ट में जाने की पूरी संभावना है। अगर एक बार यह मामला एक पक्ष कोर्ट में ले कर चला जाता है तो दूसरा पक्ष भी निःसंकोच उसके विरोध में खड़ा हो जाएगा।

प्रधानाध्यापक पद पर प्रोन्नति को लेकर उपजे विवाद की वजह से एक आशंका यह भी है कि इस कमेटी का भी हश्र कहीं नियोजित शिक्षकों के लिए बनी सेवाशर्त कमेटी की तरह ना हो जाए।

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