अध्यापक नियुक्ति नियमावली -2023 पर आपत्ति क्यों....❓
◾जानिए विस्तार से ......
1. 10 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियोजित शिक्षकों के समान काम समान वेतन मामले में बिहार सरकार के इस तर्क को मेंशन करते हुए माननीय न्यायालय द्वारा फैसला सुनाया गया था कि पुराना संवर्ग मरणशील संवर्ग है । अब बिहार राज्य के स्कूलों में यही स्थायी शिक्षक हैं। सरकार आर्थिक स्थिति के अनुसार इन शिक्षकों का आर्थिक उन्नयन करेगी। भविष्य में इसी तरह के शिक्षकों की ही नियुक्ति होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट सुझाव दिया था -सरकार टेट या अन्य कोई तरीके से शिक्षकों को बेहतर वेतन दे।
सरकार की नई नियमावली सुप्रीम कोर्ट के उक्त न्यायादेश का उल्लंघन है।
2. उक्त आदेश के अनुसार यदि सरकार कोई नई नियमावली लाती है तो पुराने शिक्षकों को इसमें समायोजित करना था।
अन्यथा सुप्रीम कोर्ट का उल्लंघन होगा।
3. पुरानी नियमावली भी प्रभावी है इसलिए उस नियमावली में शिक्षकों की प्रोन्नति के लिए जो भी प्रावधान किए गए हैं। उसका पालन कैसे होगा?? जबकि इस कैडर को भी मरणशील घोषित किया जा रहा है।
इसके लिए कौन सा सीट रिजर्व रखेगी सरकार?
4. सरकार का ऐसा निर्णय जिससे बहुत बड़ा वर्ग 4 लाख शिक्षक प्रभावित हो। उसको लागू करने से पहले इसके ड्राफ्ट नियमावली को कम से कम 1 महीने तक पब्लिक डोमेन में रखना था। प्राप्त सुझावों पर समीक्षा के पश्चात ही इसे लागू करना था। सरकार ने इसे आनन-फानन में लागू कर माननीय उच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन किया है।
(संदर्भ - प्रधान शिक्षक नियुक्ति परीक्षा इसी वजह से हाईकोर्ट के द्वारा स्थगित किया गया है।
5. 2003 से अबतक जो भी शिक्षक नियुक्त हैं । आधे से अधिक शिक्षकों का उम्र 45-50 वर्ष हो गया है। उनके शिष्य डीएलएड/बीएड/सीटीईटी उत्तीर्ण करके परीक्षा में बैठेंगे। उनके साथ शिक्षकों को खुली प्रतियोगिता में धकेलना मानवीय गरिमा के विपरीत है। 08-18 वर्ष के अनुभव को दरकिनार करना माननीय उच्च न्यायालय/सर्वोच्च न्यायालय का भी उल्लंघन है।
6. 6 से साढ़े छह घंटे विद्यालय में अध्यापन । उसके पश्चात अगले दिन की शिक्षण योजना पर मंथन में 1 घंटे का समय तथा जाति गणना जैसे कार्य करने के बाद वैसे नये अभ्यर्थियों से खुली प्रतियोगिता में शामिल कराना जो पूर्णतः परीक्षा की तैयारी में लगे हुए हैं। ये कहां का न्याय है?
यह सरकार की स्वेच्छाचारिता और मनमानेपन को दर्शाता है। इसलिए माननीय न्यायालय इसपर हस्तक्षेप कर सकती है।
7. चूंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के समय विद्यालय अध्यापक का कोई संवर्ग ही नहीं था । नियोजित शिक्षक संविदा नहीं बल्कि पंचायती राज के अधीन पूर्णतः स्थायी शिक्षक के रूप में सरकार के द्वारा ही मान्य हैं। इसलिए कोई नया संवर्ग लाने से पहले सरकार को इन कर्मचारियों का समायोजन किया जाना चाहिए।
8. सरकार विभिन्न परिस्थितियों में अलग-अलग नियमावली से बहाली करती रहती है । सरकार के द्वारा ही सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार बिहार कर्मचारी चयन आयोग द्वारा 34540 शिक्षक की नियुक्ति बिना किसी प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर की थी। इनसे दक्षता परीक्षा भी नहीं ली गई थी। जबकि 2012 से पहले के शिक्षक दक्षता उत्तीर्ण और उसके बाद नियुक्त शिक्षक बिहार टीईटी जैसी कठिन परीक्षा से चयनित हुए। 30 लाख छात्रों में से महज 60000 उत्तीर्ण हो सके थे।
इसलिए अयोग्य ठहराकर नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी के लिए परीक्षा में शामिल कराना तर्कहीन है। विभिन्न वर्षों में अलग-अलग प्रक्रिया से नियुक्त सभी शिक्षक योग्य हैं।
9. नई नियमावली के प्रभावी होने के बाद पुरानी नियमावली से सिर्फ़ नियुक्ति पर ही रोक है ।
पुरानी नियमावली में प्रावधानित ऐच्छिक स्थानान्तरण, स्नातक ग्रेड प्रोन्नति पर कोई रोक भी नहीं है। ऐसी परिस्थिति में सरकार वर्तमान में रिक्त सभी पदों को समाप्त कर विद्यालय अध्यापक पद पर नियुक्ति करेगी तो फिर पुराने शिक्षकों का स्थानान्तरण और प्रोन्नति किस पद पर होगा??
इस तरह सरकार को नई नियमावली के तहत भी नियुक्ति करने में कानूनी अड़चनों का सामना करना पड़ सकता है।
10. 14 अप्रैल को माननीय मुख्यमंत्री द्वारा नियोजित शिक्षकों को गैर सरकारी शिक्षक कहा गया था । 18 वर्षों के कार्यकाल में 8 बार शपथ ले चुके माननीय मुख्यमंत्री जी कैसे अज्ञानता भरी बातें कर रहे हैं । भारतीय संविधान के अनुसूची-11 में सम्मिलित पंचायती राज एवं 12वीं अनुसूची में शामिल नगर निकाय के अधीन नियुक्त शिक्षकों को गैर सरकारी शिक्षक कहना स्वेच्छाचारिता नहीं है। क्या पंचायती राज गैर सरकारी निकाय है?
ऐसी परिस्थिति मे सरकार को कार्यरत सभी शिक्षकों को नए संवर्ग मे समायोजन कर देना चाहिए ताकि नई नियुक्ति मे भी कोई बाधा न हो। ।
Comments
Post a Comment